विश्वभर में अपने कड़वे प्रवचन के लिए विख्यात राष्ट्रीय संत तरुण सागर को कभी जलेबी बहुत पसंद थी। वह रोजाना अपने गांव गुहंची से स्कूल जाते समय रास्ते में एक दुकान से जलेबी खाते थे। 13 वर्ष की आयु में इसी दुकान पर उनका धर्म के प्रति लगाव बढ़ा। एक दिन वह जलेबी खा रहे थे, तभी उनके कानों में आचार्यश्री पुष्पदंत सागर के प्रवचन सुनाई दिए। उन प्रवचनों में उन्होंने सुना कि इंसान चाहे तो अपने कर्मो से भगवान बन सकता है। फिर क्या था, मन में भगवान बनने की इच्छा लिए घर पहुंचे। उस अबोध बालक पवन ने माता-पिता के सामने अपनी इच्छा प्रकट कर दी। परिजन ने उन्हें रोकने के कई प्रयास किए, लेकिन अंतत: पवन जैन नहीं रुके और आचार्य श्री पुष्पदंत से दीक्षा लेकर तरुण सागर बन गए।